इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की mitti kitne prakar ki hoti hai , मिट्टी किसे कहते हैं , mitti kya hai , मृदा की विशेषताएं। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां पर ज्यादातर जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। उस दृष्टि से भारत की मिट्टियां किसानों के लिए काफी ज्यादा महत्व रखती है। भारत में विभिन्न तरह की मिट्टियां पाई जाती है।
लेकिन सभी तरह की मिट्टियो में फसल नहीं उगाई जा सकती है। सभी मिट्टियां कुछ विशेष प्रकार के फसलों के लिए ही उपयुक्त होती है। विभिन्न तरह की मिट्टियों में विभिन्न तरह के रासायनिक तत्व पाए जाते हैं और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की मिट्टी पाई जाती हैं। तो चलिए इस लेख के माध्यम से हम जानने की कोशिश करते है की मिट्टी कितने प्रकार की होती है (mitti kitne prakar ki hoti hai) और भारत में पाए जाने वाले मिट्टी के कितने प्रकार होते हैं। लेकिन उससे पहले हम जानते हैं कि मिट्टी क्या होता है?
मृदा किसे कहते है ?
भू पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत को मृदा या मिट्टी कहां जाता है जो पौधे की वृद्धि के लिए जीवांश , खनिज, जल एवं अन्य पोषक तत्व प्रदान करते हैं। मृदा शब्द लैटिन भाषा के सोलम शब्द से लिया गया है। सामान्यतः मिट्टी कई परतों से मिलकर बनी होती है लेकिन ऊपर वाले पर्त छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं जिसमें सड़े गले पदार्थ एवं जीव जंतुओं के अवशेष पाए जाते हैं। यह ऊपरी परृत विभिन्न तरह के पौधों एवं फसलों की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं।
भारत में मिट्टियों के प्रकार (Types of Soil in India)
1879 ई० में सबसे पहले डोक शैव नामक व्यक्ति ने भारत की मिट्टी का वर्गीकरण किया था और भारत की मिट्टियों को 5 भागों में विभाजित किया था। लेकिन बाद में 1953 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारत की मिट्टी को मुख्य रूप से 8 भागों में विभाजित किया है। आज के समय में इन सभी प्रकार की मिट्टी का अपना एक अलग रोल होता है। जिसमे से कुछ का निर्माण चट्टानों के विघटन से निर्मित होती है तो कुछ प्रकृतिक गतविधियों का योगदान होता है । भारतीय मृदा को मुख्यतः आठ भागो में विभाजित किया गया है जिसे आप नीचे देख सकते है :
- जलोढ़ मिट्टी ( Alluvial soil )
- लाल एवं पीली मिट्टी ( Red soil )
- लैटराइट मिट्टी (laterite soil )
- काली मिट्टी ( Black soil )
- शुष्क मृदा (Arid soils)
- लवण मृदा (Saline soils)
- पीटमय मृदा (Peaty soil) तथा जैव मृदा (Organic soils
- वन मृदा (Forest soils)
जलोढ़ मिट्टी (दोमट मिट्टी)
जलोढ़ मिट्टी को दोमट मिट्टी भी कहा जाता है जिसका रंग हल्का धूरा होता है। जलोढ़ मिट्टी नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी होती है। इस प्रकार की मिट्टी में पोटाश की मात्रा बहुत ज्यादा होती है हालांकि इसमें नाइट्रोजन , फास्फोरस और ह्यूमस की कमी होती हैं। भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 22% भाग में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती हैं।
जलोढ़ मिट्टी के नीक्षेपण से ही भारत में उत्तर का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान, कावेरी का मैदान, सिंध का मैदान और गोदावरी का मैदान बना है।जलोढ़ मिट्टी उर्वता के दृष्टिकोण से काफी अच्छी मानी जाती हैं जो धान ,मकई ,गेहूं ,दलहन ,तिलहन , आलू जैसी फसलों के लिए उपयुक्त मिट्टी हैं ।
जिस जगह पर जलोढ़ मिट्टी की मात्रा बहुत ज्यादा पाई जाती है वहां पर फसल उत्पादन के लिए यूरिया खाद डालने की जरूरत पड़ती है। जलोढ मिट्टी दो प्रकार की होती है बांगर मिट्टी और खादर मिट्टी। बांगर मिट्टी पुराने जलोढ़ मिट्टी को कहते हैं वहीं नए जलोढ़ मिट्टी को खादर कहा जाता है।

लाल मिट्टी
भारत के कुल क्षेत्रफल के 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर में लाल मिट्टी का विस्तार है। लाल मिट्टी का निर्माण जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप दावेदार एवं कायांतरित शैलो के विघटन और वियोजन से होता है।
इस तरह के मिट्टी में सिलिका और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लोहऑक्साइड की उपस्थिति इसमें होने के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है। लेकिन जल में यह मिट्टी पीली रंग की दिखाई देती हैं।
यह मिट्टी अम्लीय प्रकृति की मिट्टी होती हैं जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है। यह मिट्टी प्रायः बंजर भूमि के रूप में पाई जाती है जिसमें गेहूं, कपास , दाल एवं मोटे अनाजों की खेती की जाती है। लाल मिट्टी भारत में मध्य प्रदेश एवं आंध्र प्रदेश के पूर्व विभाग, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिमी जिले , छोटा नागपुर का पठारी क्षेत्र , राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र , नागालैंड, मेघालय की गारो, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं कर्नाटक के कुछ भागों में पायी जाती है।

पर्वतीय मिट्टी
पर्वतीय मिट्टी पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है। इस तरह की मिट्टी में कंकर एवं पत्थर की मात्रा काफी ज्यादा होती है। इसमें फास्फोरस , पोटाश और चुने की कमी पाई जाती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की इस तरह की मिट्टी में बागबानी और झूम खेती की जाती है। भारत के नागालैंड राज्य में झूम खेती सबसे ज्यादा होती है। पर्वतीय क्षेत्र में गर्म मसालों की भी अच्छी खेती होती है।

लैटेराइट मिट्टी
भारत में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से चौथे नंबर पर सबसे ज्यादा पाया जाने वाला मिट्टी लैटेराइट मिट्टी है जो कुल क्षेत्रफल के 1.26 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। लेटराइट मिट्टी का निर्माण मानसूनी जलवायु की आद्रता एवं शुस्कता के क्रमिक परिवर्तन के कारण उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है।
इस तरह के मिट्टी में आयरन और सिलिका प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं लेकिन नाइट्रोजन, पोटाश फास्फोरस चुना और कार्बनिक तत्व अधिक मात्रा में नहीं पाए जाते हैं। शैलो के टूट-फूट से निर्मित होने के कारण लेटराइट मिट्टी को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है सफेद लेटेराइट , लाल लेटेराइट और भूमिगत जल वायु लेटराइट। सफेद लेटराइट केओलिन के कारण सफेद रंग के होते है। इसमें उर्वरकता सबसे कम होती है। लाल लेटराइट में ऑक्साइड और पोटाश प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
इसकी उर्वरकता कम होती है लेकिन इसके निचले भागों में कुछ खेती की जा सकती है वहीं भूमिगत जल वायु लेटराइट और उर्वरकता की दृष्टि से काफी उपजाऊ मिट्टी होती है। क्योंकि इसमें उपस्थित लौह ऑक्साइड वर्षा ऋतु में जल के साथ घूल कर नीचे चले जाते हैं। लेटराइट मिट्टी चाय की खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। इसीलिए यह असम, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक पायी जाती है।

काली मिट्टी
जलोढ़ मिट्टी के बाद सबसे ज्यादा फसल काली मिट्टी में उगाए जाते हैं। काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने फूटने से होता है। इस तरह के मिट्टी में आयरन , एल्युमिनियम, चुना और मैग्नीशियम प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इस तरह के मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा अधिक नहीं होती है।
काली मिट्टी में टिटेनिक फेरस मैग्नेटाइट और जीवांश की उपस्थिति होने के कारण यह काले रंग की दिखती है। इस मिट्टी को दक्षिण भारत में “रेगुर” के नाम से भी जाना जाता है वहीं केरल में इस मिट्टी को “साली” का नाम दिया गया है। उत्तर भारत में काली मिट्टी को “केवाल” नाम से भी जाना जाता है।काली मिट्टी कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मिट्टी है जिसके कारण इसे काली कपास की मिट्टी भी कहा जाता है।
काली मिट्टी में कपास के अतिरिक्त गेहूं, ज्वार, बाजरा, मसूर, चना आदि की भी अच्छी उपज होती है। भारत में काली मिट्टी मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र, ओडिशा के दक्षिणी क्षेत्र, गुजरात , महाराष्ट्र, कर्नाटक के उत्तरी भाग, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी एवं समुद्र तटीय क्षेत्र , कोयंबटूर , राजस्थान के बूंदी एवं टोंक जिले और तमिलनाडु के क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

जैविक मिट्टी (पीट मिट्टी)
जैविक मिट्टी को पीट मिट्टी या दलदली मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है । यह मिट्टी ज्यादातर केरल , उत्तराखंड और पश्चिमी बंगाल के क्षेत्रों में पायी जाती है। दलदली मिट्टी में लवण की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस मिट्टी में फास्फोरस और पोटाश बहुत कम पाए जाते हैं। दलदली मिट्टी में भी फसल उगाए जाते हैं।

शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी
शुष्क मिट्टी जिसे मरुस्थली मिट्टी भी कहा जाता है यह तिलहन के उत्पादन के लिए काफी ज्यादा उपयोग किया जाता है। मरुस्थलीय मिट्टी में घुलनशील लवण और फास्फोरस की मात्रा अधिक पाई जाती है । हालांकि इसमें कार्बनिक तत्व और नाइट्रोजन की कमी होती है । इस तरह की मिट्टी में तिलहन के अतिरिक्त बाजरा, ज्वार एवं रागी जैसी फसल की भी पैदावरी अच्छी होती है लेकिन इसके लिए पानी की प्रचुर मात्रा की आवश्यकता होती है ।

लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी
लवणीय मिट्टी, क्षारीय मिट्टी, कल्लर मिट्टी, रेह मिट्टी, और उसर मिट्टी के नाम से भी जानी जाती है। इस तरह की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत कम पाई जाती है । इनमें सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है । इसीलिए यह क्षारिय होती है। जिन क्षेत्रों में जल निकास की अच्छी सुविधा नहीं होती उन क्षेत्रों में इस तरह की मिट्टी पाई जाती है। इस तरह के मिट्टी का ज्यादातर निर्माण समुद्री तटीय क्षेत्रों में होता है। भारत में यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा , राजस्थान और केरल के तटवर्ती क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। क्षारीय मिट्टी में नारियल की फसल अच्छी होती है।

लेखक के अंतिम शब्द
इस आर्टिकल में आपने जाना की मिट्टी क्या होती है और मिट्टी कितने प्रकार की होती है (mitti kitne prakar ki hoti hai) और मिट्टी का महत्त्व। उम्मीद करते है की इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आपको किसी भी प्रतिस्पर्धा परीक्षा और सामान्य ज्ञान में मिटटी से सम्बंधित सवालों को आसानी से हल कर पाएंगे। किसी तरह के सवाल और फीडबैक के लिए नीचे कमेंट करें।
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